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Fiscal Deficit क्या है? कारण, असर और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसकी अहमियत (2025 गाइड)

 

भारतीय अर्थव्यवस्था में Fiscal Deficit (राजकोषीय घाटा) एक बेहद अहम शब्द है। अक्सर आप समाचारों या बजट भाषण में सुनते होंगे कि "इस साल फिस्कल डेफिसिट जीडीपी का इतने प्रतिशत है"। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह वास्तव में होता क्या है और आम आदमी के जीवन पर इसका क्या असर पड़ता है?

चलिए, इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि Fiscal Deficit क्या होता है, यह क्यों ज़रूरी है और भारत जैसे विकासशील देश के लिए इसकी क्या अहमियत है।


Fiscal Deficit क्या होता है?

सरल शब्दों में, Fiscal Deficit का मतलब है – सरकार का खर्च उसकी कुल आय से ज़्यादा होना।
मतलब, जब सरकार टैक्स और अन्य स्रोतों से जितनी कमाई करती है, उससे ज्यादा पैसा खर्च करती है, तो बीच का यह अंतर Fiscal Deficit कहलाता है।

👉 फ़ॉर्मूला:
Fiscal Deficit = कुल सरकारी व्यय – (कुल सरकारी आय – उधारी)


Fiscal Deficit को और आसान भाषा में समझें

मान लीजिए आपके घर की मासिक आमदनी ₹50,000 है लेकिन आपका खर्च ₹60,000 हो रहा है। यानी ₹10,000 का घाटा। इस घाटे को पूरा करने के लिए आप उधार लेते हैं। बिल्कुल इसी तरह, सरकार भी जब अपने खर्च पूरे करने के लिए उधारी लेती है, तो वह Fiscal Deficit कहलाता है।


Fiscal Deficit के प्रमुख कारण

  1. सरकारी योजनाएँ और सब्सिडी – गरीबों और किसानों के लिए योजनाओं में भारी खर्च।
  2. बुनियादी ढाँचा (Infrastructure) – सड़क, रेल, बिजली जैसे प्रोजेक्ट्स पर भारी निवेश।
  3. रक्षा और सुरक्षा – देश की सुरक्षा पर बढ़ते खर्च।
  4. सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन
  5. कर संग्रह (Tax Collection) में कमी – टैक्स चोरी, मंदी या छूट योजनाओं के कारण आय घट जाना।


Fiscal Deficit क्यों ज़रूरी है?

  • विकास को गति देने के लिए – अगर सरकार केवल उतना ही खर्च करे जितनी आय हो रही है, तो बड़े प्रोजेक्ट पूरे करना मुश्किल हो जाएगा।
  • रोज़गार सृजन – घाटा लेकर सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर में खर्च करती है, जिससे नए रोजगार बनते हैं।
  • मंदी से निपटने का तरीका – कठिन समय में Fiscal Deficit अर्थव्यवस्था को सहारा देता है।


Fiscal Deficit के नकारात्मक प्रभाव

  1. महँगाई बढ़ना – ज्यादा उधारी और खर्च से बाज़ार में पैसा बढ़ता है, जिससे महँगाई आती है।
  2. विदेशी निवेशकों की चिंता – ज्यादा घाटा देखकर निवेशक हिचकिचा सकते हैं।
  3. ब्याज दरों पर दबाव – सरकार को ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है, जिससे ब्याज दरें बढ़ सकती हैं।
  4. करदाताओं पर बोझ – घाटा पूरा करने के लिए भविष्य में टैक्स बढ़ सकते हैं।


भारत में Fiscal Deficit का इतिहास

  • भारत जैसे विकासशील देशों में हमेशा ही Fiscal Deficit रहा है।
  • 2020-21 (कोविड काल) में यह बहुत बढ़ गया था क्योंकि सरकार को स्वास्थ्य और राहत पैकेज पर भारी खर्च करना पड़ा।
  • 2025 के बजट में सरकार का लक्ष्य है कि Fiscal Deficit को GDP के 4.5% के आसपास लाया जाए।


Fiscal Deficit और आम आदमी

  1. महँगाई सीधे असर डालती है – रोजमर्रा की चीज़ों के दाम बढ़ सकते हैं।
  2. लोन और EMI पर असर – ब्याज दरें बढ़ने पर आम आदमी की जेब पर बोझ।
  3. नौकरी और वेतन – सरकार का विकास खर्च बढ़ने से रोजगार के अवसर बन सकते हैं।


Fiscal Deficit को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?

  1. टैक्स कलेक्शन बढ़ाना – डिजिटल इंडिया, GST सुधार से टैक्स चोरी रोकना।
  2. बेकार खर्च कम करना – सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता और नियंत्रण।
  3. निजीकरण और डिसइन्वेस्टमेंट – घाटे वाली सरकारी कंपनियों को बेचना।
  4. आर्थिक विकास बढ़ाना – GDP बढ़ेगी तो आय अपने आप बढ़ेगी।


निष्कर्ष

Fiscal Deficit कोई बुरी चीज़ नहीं है, लेकिन इसका संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है। कम घाटा विकास की गति को रोक सकता है और ज्यादा घाटा महँगाई और उधारी का बोझ बढ़ा सकता है।
भारतीय सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में घाटे को कम करते हुए विकास की रफ्तार बनाए रखा जाए।

आम नागरिकों के लिए ज़रूरी है कि वे बजट और Fiscal Deficit जैसे विषयों को समझें, क्योंकि इसका सीधा असर उनकी कमाई, खर्च और भविष्य की बचत पर पड़ता है।

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